तुम सुन्दर पुष्प हो, जो गृह-हरियाली निश्चित करे।
तुम्हारी उपस्थिति स्वर्णिम-सुख-रत्नों को संचित करे॥
ध्वनि कंठ से निकलेगी नहीं, यदि स्वर-विहीन हो भाषा।
तुम यदि दूर चले जाओ, तो हृदय में छाएगी निराशा॥१॥
तुम्हारी उपस्थिति स्वर्णिम-सुख-रत्नों को संचित करे॥
ध्वनि कंठ से निकलेगी नहीं, यदि स्वर-विहीन हो भाषा।
तुम यदि दूर चले जाओ, तो हृदय में छाएगी निराशा॥१॥
पग-पग पर मेरा साथ दिया, जब भी मैं अकेला पड़ा।
जब तुम्हारी संगति मिले, तो सुख भी बन जाए बड़ा॥
तुम्हारे अनुभव के कारण, मेरे चरित्र का विकास हुआ।
तुम्हारे मार्गदर्शन के कारण, मुझमें सुमति का वास हुआ॥२॥
जब तुम्हारी संगति मिले, तो सुख भी बन जाए बड़ा॥
तुम्हारे अनुभव के कारण, मेरे चरित्र का विकास हुआ।
तुम्हारे मार्गदर्शन के कारण, मुझमें सुमति का वास हुआ॥२॥
तुम मेरी मित्र हो, जो दे कुशलता का आश्वासन।
तुम मेरी शुभचिंतक हो, जो बनाये रखे अनुशासन॥
तुम मेरी प्रेरणा का स्त्रोत हो, मुझे तुम पर गर्व है।
तुम जीवन में रंग भरती हो, और मनता घर में पर्व है॥३॥
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