आजकल मेरे मन को यह सवाल तंग कर रहा है
कि इंसान हर जगह है, लेकिन इंसानियत कहाँ है
इंसान को दूसरों की कमियों का ध्यान रहता है
लेकिन अपनी ही कमियों से वह अनजान रहता है
फिर वही आदमी समाज में नफरत के पौधे उगाता है
वह पहले ईश्वर के सामने हर रोज अपना सर झुकाता है
फिर उसके नाम पर उसके बच्चों को हानि पहुँचाता है
वह कहता है सबको कि वह सच्चाई का साथ देता है
लेकिन पीठ पीछे वह बुराई में भी अपना हाथ देता है
जो आदमी सबको सीना तानकर अपना ईमान दिखाता है
वही आदमी स्वार्थ के लिए अपना ईमान भी बिकवाता है
यह आदमी एक तरफ तो अपनों के साथ गले मिलता है
पर दूसरी ही ओर वह उनकी खुशियों से जलता है
जिन माँ-बाप से उसे दुनिया का हर सुख मिल जाता है
बड़ा होने के बाद वह उनके उपकारों को भूल जाता है
वह मुश्किल के समय में सबका साथ देने का दिलासा देता है
लेकिन मुश्किलों के वक्त में असलियत का खुलासा होता है
जिन लोगों के लिए चापलूस आदमी मीठे शब्द निकालता है
उन्हीं के लिए मन ही मन ढेर सारी गालियाँ भी उगलता है
उन्हीं के लिए मन ही मन ढेर सारी गालियाँ भी उगलता है
यह खुदगर्ज़ आदमी केवल अपने बारे में ही सोचता है
और अपने भाई-बंधुओं की मुश्किलें अनदेखा करता है
हर आदमी अपने लिए ढेर सारी धन-दौलत चाहता है
लेकिन कड़ी मेहनत करने से हर कोई हिचकिचाता है
यह आदमी इस बुरे समाज में बदलाव तो चाहता है
पर बदलाव का हिस्सा बनने से उसका जी कतराता है
कहने को तो इस इंसान की नजरें आसमान पर टिकी हुई हैं
लेकिन उसी इंसान के चरित्र से आजकल इंसानियत मिटी हुई है
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