बालपन को पीछे छोड़, आरम्भ हुआ नव-जीवन।
अब तेरे समक्ष खड़ा है, संघर्ष-पूर्ण घना वन॥
परिश्रम की कुल्हाड़ी हमेशा धारण करके रखना।
तब यह घोर भयानक वन, बंद हो जाएगा दिखना॥
तेरे पंख सशक्त हैं, उड़ना तेरा धर्म है।
असीम आसमा को छूना, यही जीवन-कर्म है॥
ज्ञान-वायु के साथ बनाकर रखो अपना ताल-मेल।
तभी बनेगा नभ को चूना, बाएं हाथ का खेल॥
सत्य-नीति की लाठी बनेगी तेरा परम सहारा।
दुष्टात्मा को दूर भगाकर, बहेगी कीर्ति-धारा॥
ईश्वर से है मेरी, सदैव यही प्रार्थना।
कि संपन्न हो जाए तेरी, प्रत्येक मनोकामना॥
अब तेरे समक्ष खड़ा है, संघर्ष-पूर्ण घना वन॥
परिश्रम की कुल्हाड़ी हमेशा धारण करके रखना।
तब यह घोर भयानक वन, बंद हो जाएगा दिखना॥
तेरे पंख सशक्त हैं, उड़ना तेरा धर्म है।
असीम आसमा को छूना, यही जीवन-कर्म है॥
ज्ञान-वायु के साथ बनाकर रखो अपना ताल-मेल।
तभी बनेगा नभ को चूना, बाएं हाथ का खेल॥
सत्य-नीति की लाठी बनेगी तेरा परम सहारा।
दुष्टात्मा को दूर भगाकर, बहेगी कीर्ति-धारा॥
ईश्वर से है मेरी, सदैव यही प्रार्थना।
कि संपन्न हो जाए तेरी, प्रत्येक मनोकामना॥
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