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Thursday 16 March 2017

मनुष्य

ईश्वर रचित मनुष्य विचित्र प्राणी है।
दोगलेपन से भरी इसकी वाणी है॥

सीना तानकर सुनाता है लोगों को वो सुविचार।
पर उन सुविचारों से विपरीत उसका आचार॥

जो व्यक्ति गाता गुणगान राजा हरीशचंद्र के।
वही पाता अपने स्वप्न छल-कपट षडयंत्र से॥   

प्रतिदिन हो जाता है वो ईश्वर को नतमस्तक।
फिर बनता है उसी की संतानों का विध्वंसक॥ 

दिखाता है सबको वो ढेर सारा अनुराग।
किन्तु भीतर जलती उसके द्वेष की आग॥

करता जिनका विपदा में वो स्मरण।
करता उनके उपकारों का विस्मरण॥

जब तक उसको लाभ मिले, निःसंकोच करता कुकर्म।
जब उसको हानि मिलती, तब स्मरण वो करता धर्म॥

देता नेता जंता को विकास का आश्वासन।
पर सत्ता में आकर करता वो कुशासन॥ 

आजकल के योगी रहते मोह माया में लिप्त।
संन्यासियों की तृषणायें रह जाती हैं अतृप्त॥

बढ़-चढ़कर माँगता मनुष्य अपने अधिकार।
पर कर्त्तव्य पालन करने से करता वो इनकार॥

मनुष्य नहीं रखता अपने चरित्र की खोट का ज्ञान।
और लगाता समाज की दुर्दशा की कारणों पर ध्यान॥   

भौतिक स्तर पर अत्यंत प्रगति कर रही है मनुष्यता।
किन्तु चरित्र के सुधार की इसको है आवश्यकता॥                    

     
    

Tuesday 14 March 2017

उलझन

होने वाले हैं पूरे मेरे जीवन के इक्कीस साल,
अभी तक कर रहा है तंग मेरे मन को यह सवाल,
कि करना क्या है मुझे पढ़ाई-लिखाई के बाद,
चल रहा है मन में विभिन्न विकल्पों के बीच विवाद। 

हर कोई अनुभव अनुसार देता ज्ञान की बहार,
जिससे बढ़ता मेरे मन की शंकाओं का भार,
चल रहा है मेरे लिए उलझनों का समय,
कठिन हो रहा है लेना मेरे लिए उचित निर्णय। 

पूछते हैं जब माँ-बाप कि भविष्य की क्या है योजना,
तो कहता हूँ उनसे कि इसका जवाब मुझे है खोजना,
वे निराश होकर याद दिलाते कि बीत गया है बचपन,
वह समय दूर नहीं जब अपनाना पड़ेगा स्वावलंबन। 

जी रहा हूँ इन दिनों अपने भविष्य में,
जो भरा हुआ है अज्ञात रहस्यों से,
हो रहा हूँ अनिश्चित कल को लेकर चिंतित,
और हो रहा हूँ वर्तमान के चैन से वंचित। 

Monday 28 November 2016

इंसान


आजकल मेरे मन को यह सवाल तंग कर रहा है
कि इंसान हर जगह है, लेकिन इंसानियत कहाँ है
इंसान को दूसरों की कमियों का ध्यान रहता है
लेकिन अपनी ही कमियों से वह अनजान रहता है


यह आदमी पूरी दुनिया को स्नेह के उपदेश सुनाता है
फिर वही आदमी समाज में नफरत के पौधे उगाता है
वह पहले ईश्वर के सामने हर रोज अपना सर झुकाता है
फिर उसके नाम पर उसके बच्चों को हानि पहुँचाता है

वह कहता है सबको कि वह सच्चाई का साथ देता है
लेकिन पीठ पीछे वह बुराई में भी अपना हाथ देता है
जो आदमी सबको सीना तानकर अपना ईमान दिखाता है
वही आदमी स्वार्थ के लिए अपना ईमान भी बिकवाता है

यह आदमी एक तरफ तो अपनों के साथ गले मिलता है
पर दूसरी ही ओर वह उनकी खुशियों से जलता है
जिन माँ-बाप से उसे दुनिया का हर सुख मिल जाता है
बड़ा होने के बाद वह उनके उपकारों को भूल जाता है

वह मुश्किल के समय में सबका साथ देने का दिलासा देता है  
लेकिन मुश्किलों के वक्त में असलियत का खुलासा होता है
जिन लोगों के लिए चापलूस आदमी मीठे शब्द निकालता है
उन्हीं के लिए मन ही मन ढेर सारी गालियाँ भी उगलता है 

यह खुदगर्ज़ आदमी केवल अपने बारे में ही सोचता है
और अपने भाई-बंधुओं की मुश्किलें अनदेखा करता है
हर आदमी अपने लिए ढेर सारी धन-दौलत चाहता है
लेकिन कड़ी मेहनत करने से हर कोई हिचकिचाता है
                                                
यह आदमी इस बुरे समाज में बदलाव तो चाहता है
पर बदलाव का हिस्सा बनने से उसका जी कतराता है
कहने को तो इस इंसान की नजरें आसमान पर टिकी हुई हैं
लेकिन उसी इंसान के चरित्र से आजकल इंसानियत मिटी हुई है

Sunday 4 September 2016

श्री गुरुवे नमः

विद्यानिधि गुरुवर आपको शिरसा प्रणाम।
आपके सत्-दर्शन से मिल जाएँ श्रीराम्॥
आपका ज्ञान-सिंधु लगाए तमस पर विराम।
आपके देवाशीष से मिले शुभ परिणाम॥

आपकी विचक्षणता मेरा मन प्रबुद्ध करे।
आपकी प्रवीणता मेरी त्रुटियों को शुद्ध करे॥
आपका अनुभव श्रेष्ठ पथ प्रत्यक्ष करे।
आपका ज्ञान-प्रकाश सत्य-वाक् समक्ष करे॥

आपके उपदेश अज्ञान को पदक्रांत करे।
आपका मार्गदर्शन शंकाओं को शांत करे॥
आपका स्नेह मुझे सशक्त करे।
आपकी प्रसन्नता मुझे संतुष्ट करे॥

Wednesday 24 August 2016

विवेक सर

जिस पल से प्राप्त हुआ आपसे पढ़ने का अवसर,
तत्काल ही बन गयी हमारी सभी समस्याएं नश्वर।
आपने प्रदान किया हमें उचित मार्गदर्शन,
जिसने बढ़ाया हमारा ईको-बी.इस. के प्रति आकर्षन।
आपने हमें विवेक से प्रत्येक काम करना सिखाया,
आपने प्रतिकूल परिस्थिति को भी आनन्दमयी बनाया।
आपने हमें अध्ययन का उचित तरीक सिखाया,
जिससे हमारा लक्ष्य हमारे निकट आया।

कक्षा में चलाई विनोद की ठंडी हवा,
और सदैव सशक्त किया ज्ञान-गंगा का प्रवाह।
अपनी कक्षा में रखकर नैतिक मूल्यों को विद्यमान,
आपने हमें बनाया, एक मनुष्य चरित्रवान।
हमें है मात्र आपके आशीर्वाद की आकांक्षा,
ताकि संपन्न हो सके हमारी प्रत्येक महत्वाकांक्षा। 

Sunday 14 August 2016

15 अगस्त, 1947

पूरी दुनिया के सामने रात का अंधेरा था,
लेकिन हमारे लिए तो एक नया सवेरा था।
ग़ुलामी की बेड़ियाँ सदा के लिए टूट गई थी,
सोने की चिड़िया उनके चंगुल से छूट गई थी॥

मन रहा था घर-घर में आज़ादी का त्योहार,
ख़त्म हो गए थे अब ज़ालिम के अत्याचार।
लाल किले पर तिरंगा छू रहा था आसमान,
पा रहा था भारत पूरी दुनिया का सम्मान॥

सदियों तक रहा जिस देश में अंधकार,
आज उसको मिली रोशनी की बहार॥
खून से लिखी है यह तारीख इतिहास के पन्नों पर,
इंक़िलाब की तलवार से दुःखों ने छोड़ा हमारा घर।

उनके ख़िलाफ़ जंग में हमें मिली जीत इस पल,
हमें अब अंदर की समस्याओं का ढूँढ़ना है हल॥
पकड़ना है अब हमें प्रगति का विमान,
बनाना है हमें भारत देश को महान॥

॥जय हिन्द॥ 

Saturday 6 August 2016

मित्रता




मित्र-बंधन अतीव सुन्दर, जीवन में हर्ष भरे।
सखा हमारे हित हेतु, अथक अविरल संघर्ष करे॥
मित्र संगति आदि है, अशोष्य-आनंद-धारा का।
विनोद-रस चर्चा में भरे, वो स्रोत हास्य-फुव्वारा का॥

शीघ्र हृदय भाव को समझे और विपदा में बने सहारा।
वो कन्धा मिलाकर साथ चले और सुखद लगे जग सारा॥
दीपक-प्रकाश दीया को मिले, हिमनदी नदी जल-युक्त बनाये।
वो आत्म-विकास की प्रेरणा दे और मन को चिंता-विमुक्त बनाये॥

मित्र जीवन रंगीन बनाये और करे दुखों का सन्हार।
मित्रता वो गीत है, जो है भगवान का उपहार॥
मित्रों से प्राप्त सुख, भौतिक वस्तुओं से अतुल्य है।
सच्चे मित्र अति दुर्लभ हैं, मित्र बंधन अमूल्य है॥