समाज निवास असत्य का, भ्रष्टता का मान है।
नृशंसता का काल है, घृणा-भाव प्रधान है॥
रक्त-पात निश्चित है , हिंसा विद्यमान है।
वर्तमान काल में, पाप वर्धमान है ॥ १ ॥
स्वार्थी- जन उपस्थित हैं, तामस प्रवाहमान है।
अल्पज्ञ मूर्ख हर-ओर हैं, जिनको अभिमान है ॥
धूर्त-मुनि मंत्र जपे, शास्त्र का अपमान है।
वर्तमान काल में, पाप वर्धमान है ॥ २ ॥
किन्तु ऊर्जा सुनीति की और सत्य शक्तिमान है ।
ईश्वर के आशीष से, दृढ़ पुरुष बलवान है॥
असत का अंत, दैत्य-दहन, हम सभी का काम है ।
पाप वर्धमान है, पर पाप नाशवान है ॥ ३ ॥
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