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Saturday 19 September 2015

वर्तमान समाज

समाज निवास असत्य का, भ्रष्टता का मान है। 
नृशंसता का काल है, घृणा-भाव प्रधान है॥ 
रक्त-पात निश्चित है , हिंसा विद्यमान है। 
वर्तमान काल में, पाप वर्धमान है ॥ १ ॥  


स्वार्थी- जन उपस्थित हैं, तामस प्रवाहमान है।  
अल्पज्ञ मूर्ख हर-ओर हैं, जिनको अभिमान है  ॥ 
धूर्त-मुनि मंत्र जपे, शास्त्र का अपमान है। 
वर्तमान काल में, पाप वर्धमान है ॥ २ ॥ 

किन्तु ऊर्जा सुनीति की और सत्य शक्तिमान है ।  
ईश्वर के आशीष से, दृढ़ पुरुष बलवान है॥ 
असत का अंत, दैत्य-दहन, हम सभी का काम है । 
पाप वर्धमान है, पर पाप नाशवान है  ॥ ३ ॥ 
  

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