वीर योद्धा ले प्रतिज्ञा मातृ-भूमि त्राण की,
सहर्ष वो प्रदान करे आहुति प्राण की ।
आश्वस्त करे वो देश-रक्षा, यही परम संकल्प है,
अभयपूर्वक उसने चुना, मृत्यु का विकल्प है ॥ १ ॥
सिंह-शक्ति सैन्य की, वो वीरता का चिह्न है ,
नृप के शस्त्र और प्रयत्न वन में अर्थहीन हैं ।
मेघ-गर्जन-चक्रवात, ये आपदा निष्प्राण है,
क्योंकि शूर एक सूर्य-तेज का बाण है ॥ २ ॥
भारत लक्ष्य शत्रु का, कभी भी वो प्रहार करे ,
पर वज्र-शक्ति योद्धा की, सदैव अरि-संहार करे ।
हिमगिरी का दुर्ग वैरी-दल के लिए अभेद्य है ,
क्योंकि समरवीर शौर्य का कवच अछेद्य है ॥ ३ ॥
वसुधैव-कुटुम्बकम की रीति भारत-देश की ,
किसी के भी प्रति नहीं, भावनाएं द्वेष की ।
किन्तु जो मुर्ख, माँ के मान पर स्वदृष्टि-पात का पाप करे ,
प्रचंड वीर सुत को देख, वो अंत में विलाप करे ॥ ४ ॥
शूरवीर उदार-रूप शान्ति के समय दिखाए,
वीर का करुण व्यवहार उसको लोकप्रिय बनाये ।
रणवीर युद्ध के समय, शत्रुओं को निराश करे,
उसका भीष्म काली-रूप, दैत्यों का विनाश करे ॥ ५ ॥
सगर्व-गान जय-जवान-मंत्र का सज्जन करे ,
वीर को नमो:-नमन, भारती सर्वजन करे।
समाज का कर्त्तव्य है कि वीर-बलि वृथा न जाए,
वो देश-विकास में हाथ दे, और भू को श्री-निवास बनाये ॥ ६ ॥
॥ जय हिन्द ॥ ॥ भारत माता की जय ॥
बढ़िया रचना
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