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Tuesday 24 May 2016

ईश्वर



ईश्वर के अनेक-अनेक चित्र प्रचलित हैं,
इसलिए उनका स्पष्ट रूप अनिश्चित है।
यह ब्रह्मांड उनके द्वारा रचित है,
और उनके दिव्य तेज से संचालित है॥

वायु नेत्रों को नहीं दिखती,
किन्तु वह हर ओर है।
ईश्वर भी कण-कण में है,
बस अनुभव करने की देर है॥

इस सृष्टि पर उसके माया-जाल का आवरण है,
जो बनता, सभी अचिन्त्य घटनाओं का करण है।
ईश्वर इस जगत का आदि, मध्य और अंत है,
कहता यह बात, विश्व का हर पावन ग्रंथ है॥

वत्स बोला, "हे प्रभु! मेरे अस्तित्व का क्या उद्देश्य है?"
ईश्वर बोले, "यही ढूँढ़ना ही तो तेरा जीवन-लक्ष्य है।
उसी की तलाश करते-करते मेरे सभी पुत्र दुःखी हैं,
किन्तु जो मेरी शरण में आया, वह अब सुखी है"॥

"मैं सबका वह मित्र हूँ, जो कभी पक्षपात ना करे,
सुकृतों की रक्षा करे, और दुष्टों का प्रतिघात करे।
तुम कभी भी, स्वयं को अकेला मत समझना,
मैं सदैव सुनूँगा निर्मल हृदय से की गई प्रार्थना"॥

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