पूरी दुनिया के सामने रात का अंधेरा था,
लेकिन हमारे लिए तो एक नया सवेरा था।
ग़ुलामी की बेड़ियाँ सदा के लिए टूट गई थी,
सोने की चिड़िया उनके चंगुल से छूट गई थी॥
मन रहा था घर-घर में आज़ादी का त्योहार,
ख़त्म हो गए थे अब ज़ालिम के अत्याचार।
लाल किले पर तिरंगा छू रहा था आसमान,
पा रहा था भारत पूरी दुनिया का सम्मान॥
सदियों तक रहा जिस देश में अंधकार,
आज उसको मिली रोशनी की बहार॥
खून से लिखी है यह तारीख इतिहास के पन्नों पर,
इंक़िलाब की तलवार से दुःखों ने छोड़ा हमारा घर।
उनके ख़िलाफ़ जंग में हमें मिली जीत इस पल,
हमें अब अंदर की समस्याओं का ढूँढ़ना है हल॥
पकड़ना है अब हमें प्रगति का विमान,
बनाना है हमें भारत देश को महान॥
॥जय हिन्द॥
Awesome poem.
ReplyDeleteSuck rhyming, much wow ^^
Thank you. I appreciate that you took time to read my poem and comment. However, I didn't get that what you meant by 'such rhyming, much wow'.
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